राजनीतिक इतिहास के बारे में ज्यादा तो नहीं जानता , मगर हा इस बार जब लोकसभा चुनाव 2014 का " शंखनाद " हुआ , तो मानो ऐसा लगा की अब भारत में "परिवर्तन" हो रहा है। रूढ़ीवादी राजनीति समाप्त हो रही है। सब तरफ " विकास " और सिर्फ विकास ही मुख्य शब्द थे बाकी शब्दों को "लोरीया " गाकर सुला दिया गया.... सिर्फ विकास ही जो , बड़े ही "हूंकार' के साथ लिए जाते थे।
सभी दिशाओं में हर ऊँचाई से इसकी " गर्जना " सुनने को मिलती। इसकी " Marketing" भी भरपूर "मॉडल" के साथ हुई। अच्छा भी लग रहा था।
ये शब्द पढ़ने और सुनने दोनों ही रूपों में बहुत अच्छा लगता है , लगे भी क्यों न आखिर सब को ' विकास ' जो चाहिए।
जैसे-जैसे वक़्त निकलता गया ये " विकास " कटाई "बोटाई " से होते हुए "बदला" लेकर,
" पिंक रेवोलुशन " तक पहुँच कर "हिन्दू और मुसलमान" की ओर बढ़ने लगा। मौजूदा हालात देखकर ऐसा लगता है की यह " विकास " कही इतना विकास न कर जाए की फिर इतिहास के पन्नो से कुछ "पैराग्राफ" वापस उद्घृत करना पड़े।
इतिहास होता है सीखने के लिए न की दोहराने के लिए।