जोशुआ लीबमेन ने लिखा है- मैं जब युवा था, तब जीवन में क्या पाना है, इसके बहुत स्वप्न देखता था। फिर एक दिन मैंने सूची बनाई थी- उन सब तत्वों को पाने की, जिन्हें पाकर व्यक्ति धन्यता को उपलब्ध होता है। स्वास्थ्य, सौंदर्य, सुयश, शक्ति, संपत्ति- उस सूची में सब कुछ था। उस सूची को लेकर मैं एक बुजुर्ग के पास गया और उनसे कहा कि क्या इन बातों में जीवन की सब उपलब्धियां नहीं आ जाती हैं?
मेरी बातों को सुन और मेरी सूची को देख उन वृद्ध की आंखों के पास हंसी इकट्ठा होने लगी थी और वे बोले थे, मेरे बेटे, बड़ी सुंदर सूची है। अत्यंत विचार से तुमने इसे बनाया है। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात तुम छोड़ ही गये हो, जिसके अभाव में शेष सब व्यर्थ हो जाता है। किंतु, उस तत्व के दर्शन, मात्र विचार से नहीं, अनुभव से ही होते हैं।
मैंने पूछा, वह क्या है? क्योंकि मेरी दृष्टिं में तो सब-कुछ ही आ गया था। उन वृद्ध ने उत्तर में मेरी पूरी सूची को निर्ममता के साथ काट दिया और उन सारे शब्दों की जगह उन्होंने छोटे से तीन शब्द लिखे,'मन की शांति ।'
(साभार - योगेश गर्ग )
मेरी बातों को सुन और मेरी सूची को देख उन वृद्ध की आंखों के पास हंसी इकट्ठा होने लगी थी और वे बोले थे, मेरे बेटे, बड़ी सुंदर सूची है। अत्यंत विचार से तुमने इसे बनाया है। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात तुम छोड़ ही गये हो, जिसके अभाव में शेष सब व्यर्थ हो जाता है। किंतु, उस तत्व के दर्शन, मात्र विचार से नहीं, अनुभव से ही होते हैं।
मैंने पूछा, वह क्या है? क्योंकि मेरी दृष्टिं में तो सब-कुछ ही आ गया था। उन वृद्ध ने उत्तर में मेरी पूरी सूची को निर्ममता के साथ काट दिया और उन सारे शब्दों की जगह उन्होंने छोटे से तीन शब्द लिखे,'मन की शांति ।'
(साभार - योगेश गर्ग )