बहुत दिनों बाद अपने ब्लॉग पर कुछ लिख रहा हूँ, जीवन में व्यस्तताओं के कारण बहुत कम समय मिल पाता है लिखने का, वैसे भी मैं कोई पेशेवर ब्लॉगर नहीं हूँ। जब कभी लिखने की इच्छा हुई तब यहाँ आ जाता हूँ।
आज मैं आमिर खान की फिल्म PK देख कर आया फिल्म देखने से मुझे जो कुछ भी महसूस हुआ उसे यहाँ लिख रहा हूँ।
जो लोग PK पर बैन लगाने की माँग कर रहे है, उनसे मै भी कुछ कहना चाहता हूँ..
जब हिन्दू देवी देवताओं के उपर अत्यधिक हास्य पूर्ण ढंग से बन रहे ढेरों एनीमेशन फिल्म तमाम कार्टून चैनल पर दिखाए जाते है तो किसी की भावना पर पर कोई प्रभाव नही पड़ता। और तो और इन एनीमेशन में दिखाई जाने वाली कहानियों का हमारे किसी ग्रन्थ,पुराण और उपनिषद में कोई वर्णन नही मिलता।
मज़े की बात ये देखिये की ये एनीमेशन फिल्म ज्यादातर हिन्दू घरों में ही देखा जाता है। तब किसी के भावना का कोई एक्सीडेंट नही होता, कोई चोट नही लगती। क्यों.??
क्यों की इस एनीमेशन फिल्म को हम और आप सिर्फ मनोरंजन के लिए मनोरंजन की दृष्टि से देखते है। कोई विशेष चश्मा पहनकर नहीं।
अगर सिर्फ फिल्म देखने से लोगों का ब्रेन वाश हो रहा है, धर्म कमजोर हो रहा है, प्रतिष्ठा में कमी आ रही है..
तो, फिल्म से ये सब परिवर्तन भी होने चाहिए..
फिल्म से अब तक हर पुलिस वाले को "इंडियन","दबंग"और "सिंघम" बन जाना चाहिए।
देशप्रेमी को "स्वदेश" वाला शाहरुख़ बन जाना चाहिए।
हर बहू को "तुलसी" होना चाहिए।
और हर परिवार को रामकिशन का "हम साथ साथ हैं" जैसा परिवार हो जाना चाहिए था।
क्या ऐसा है??
PK के विरोध का नेतृत्व वही लोग कर रहे है , जिन्हें अपना धंधा आगे मंदा होता हुआ नज़र आ रहा है , या उन्होंने फिल्म को अछे से नहीं देखा है ,
साथ में वे लोग भी है, जिनके कपडे DANCING CAR से चोरी हो गये
देखिये सज्जनों फ़िल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए होती है।
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| कुछौ बुझाइल की नाहीं |
#PK देखें तो सिर्फ मनोरंजन के लिए मनोरंजन की दृष्टि से देखें।
भावनाएं आहत होने वाले चश्मे से नही...
अगर एम्मा से कुछौ समझ में आवा तौ ठीक है
नही तो समझ लियो की हम ईका, ई गोला वालों के लिए नाही लिखा हूँ।