मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

कश्मश नये साल की...


 दोस्तों नये साल के आने का समय जैसे-जैसे नज़दीक आता जाता है,
 वैसे-वैसे  मन में रोमांच, मस्ती , आनंद और ख़ुशी की लहर सी उठाने लगाती है. साथ ही साथ मस्तिष्क का हिस्सा पुराने गले सिकवे, पुरानी गलतियों और उनसे सीखी बातो को आँखों के पटल पर रखने लगता है।
मेरे सामने भी ऐसे ही   बहुत से दृश्य आये। कभी ये खुद आते रहते है कभी कुछ देख,सुन या
 पढ़ कर आ जातेहै। एसी ही कुछ लाइनें मेरे सामने भी आयी WhatsApp के माध्यम से उसे आप सब के साथ साझा कर रहा हूँ बहुत ही खुबसूरत पंक्तियाँ है --

ज़िन्दगी का एक वर्ष कम हो चला ,
कुछ पुरानी यादों को पीछे छोड़ चला,

कुछ ख्वाइशें दिल में रह जाती है,
कुछ बिन मांगे मिल जाती है 

कुछ छोड़ कर चले गये
 कुछ नये जुड़ेंगे इस सफ़र में,

कुछ मुझसे बहुत खफ़ा है ,
कुछ मुझसे बहुत खुश है ,

कुछ शायद अनजान है ,
कुछ बहुत परेशान है,

कुछ को मेरा इंतज़ार है ,
कुछ का मुझे इंतज़ार है  

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

फ़िल्में समाज सुधारने का प्रोजेक्ट है क्या...??

बहुत दिनों बाद अपने ब्लॉग पर कुछ लिख रहा हूँ, जीवन में व्यस्तताओं के कारण बहुत कम समय मिल पाता है लिखने का, वैसे भी मैं कोई पेशेवर ब्लॉगर नहीं हूँ। जब कभी लिखने की इच्छा हुई तब यहाँ आ जाता हूँ।  
आज मैं आमिर खान की फिल्म PK देख कर आया फिल्म देखने से मुझे जो कुछ भी महसूस हुआ उसे यहाँ लिख रहा हूँ।  


जो लोग PK पर बैन लगाने की माँग कर रहे है, उनसे मै भी कुछ कहना चाहता हूँ..
जब हिन्दू देवी देवताओं के उपर अत्यधिक हास्य पूर्ण ढंग से बन रहे ढेरों एनीमेशन फिल्म तमाम कार्टून चैनल पर दिखाए जाते है तो किसी की भावना पर पर कोई प्रभाव नही पड़ता। और तो और इन एनीमेशन में दिखाई जाने वाली कहानियों का हमारे किसी ग्रन्थ,पुराण और उपनिषद में कोई वर्णन नही मिलता।

मज़े की बात ये देखिये की ये एनीमेशन फिल्म ज्यादातर हिन्दू घरों में ही देखा जाता है। तब किसी के भावना का कोई एक्सीडेंट नही होता, कोई चोट नही लगती। क्यों.??
क्यों की इस एनीमेशन फिल्म को हम और आप सिर्फ मनोरंजन के लिए मनोरंजन की दृष्टि से देखते है। कोई विशेष चश्मा पहनकर नहीं।

अगर सिर्फ फिल्म देखने से लोगों का ब्रेन वाश हो रहा है, धर्म कमजोर हो रहा है, प्रतिष्ठा में कमी आ रही है.. 
तो, फिल्म से ये सब परिवर्तन भी होने चाहिए..
फिल्म से अब तक हर पुलिस वाले को "इंडियन","दबंग"और "सिंघम" बन जाना चाहिए।
देशप्रेमी को "स्वदेश" वाला शाहरुख़ बन जाना चाहिए।
हर बहू को "तुलसी" होना चाहिए।
और हर परिवार को रामकिशन का "हम साथ साथ हैं" जैसा परिवार हो जाना चाहिए था।
क्या ऐसा है?? 
PK के  विरोध का नेतृत्व  वही लोग कर रहे है , जिन्हें अपना धंधा आगे  मंदा होता हुआ नज़र आ रहा है , या उन्होंने फिल्म को अछे से नहीं देखा है ,
साथ में वे लोग भी है, जिनके कपडे DANCING CAR से चोरी हो गये 
देखिये सज्जनों फ़िल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए होती है। 
कुछौ बुझाइल की नाहीं 
‪#‎PK‬ देखें तो सिर्फ मनोरंजन के लिए मनोरंजन की दृष्टि से देखें। 
भावनाएं आहत होने वाले चश्मे से नही... 

अगर एम्मा से कुछौ समझ में आवा तौ ठीक है
नही तो समझ लियो की हम ईका, ई गोला वालों के लिए नाही लिखा हूँ।

रविवार, 3 अगस्त 2014

FriendShip Day

न जाने कब फिर से ये मंज़र सुहाना मिलेगा;
ये खिल-खिलाती हँसी और दोस्तों का याराना मिलेगा;
क़ैद कर लो इन खूबसूरत लम्हों को अपनी यादों में यारो;
इन्ही लम्हों से हमें ज़िंदगी में रोते हुए भी हँसने का बहाना मिलेगा।

दोस्ती वह भावना है जिसके बगैर यदि मैं कहूं कि एक इन्सान की जिंदगी सिवा तन्हाई के कुछ नहीं है तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी.ये सत्य है कि एक व्यक्ति जो भावनाएं एक दोस्त के साथ बाँट सकता है वह किसी के साथ नहीं बाँट सकता.

अब सारी दोस्ती इंटरनेट पर चैटिंग करते हुए अपने दोस्तों से अपनी ही भाषा में Hi- Hello ,Fine dude, करते हुए , SMS की भाषा में जकड़ी दोस्ती मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने, मोटरसाइकल पर शहर की सड़कों को नापने में, नोट्स आदान-प्रदान करने में व पुरानी जींस व गिटार से बंजारे को घर दिलाते हुए जैसे गीत सुनते हुए कब खत्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता। आज याद आया Friendship Day जो है न

रविवार, 4 मई 2014

Exclusive interview

Exclusive interview
कितना "एक्सक्लूसिव" होता है...? 
इसका अन्दाज़ा आप इसी से लगा सकते है, इंटरव्यू देने वाले के सबसे प्रिय विषय/वस्तु/चित्र या मूर्ती
का इस्तेमाल अक्सर "Background” निखारने के लिये किया जाता है,
 नेता चाहे किसी भी पार्टी का हो, चैनल वाले बैकग्राउंड हमेशा उसी के पसंद  का लगते है।  
और निष्पक्ष का लेबल लगाकर दिखाते रहते है,.
बाकी जो है, सो हईये है।
अरे! गूगल कर के देख लीजिये..
अब तो #Exclusive शब्द #Media सिर्फ 'TRP' के लिये करती है।

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

"विकास" से पहुंचे "हिन्दू -मुसलमान" तक ...

राजनीतिक इतिहास के बारे में ज्यादा तो नहीं जानता , मगर  हा इस बार जब लोकसभा चुनाव 2014  का " शंखनाद "  हुआ , तो मानो ऐसा लगा की अब भारत में "परिवर्तन" हो रहा है। रूढ़ीवादी राजनीति समाप्त हो रही है।  सब तरफ " विकास " और सिर्फ विकास ही मुख्य शब्द थे बाकी शब्दों को "लोरीया " गाकर सुला दिया गया.... सिर्फ विकास ही  जो , बड़े ही "हूंकार' के साथ लिए जाते थे।
सभी दिशाओं में  हर ऊँचाई   से इसकी " गर्जना " सुनने को मिलती।  इसकी " Marketing" भी भरपूर "मॉडल" के साथ हुई।  अच्छा भी लग रहा था।

ये शब्द पढ़ने और सुनने दोनों ही रूपों में बहुत अच्छा लगता है , लगे भी क्यों न आखिर सब को ' विकास ' जो चाहिए। 

जैसे-जैसे वक़्त निकलता गया ये " विकास " कटाई "बोटाई " से होते हुए "बदला" लेकर, 
" पिंक रेवोलुशन " तक  पहुँच कर  "हिन्दू और मुसलमान" की ओर बढ़ने लगा।  मौजूदा हालात देखकर ऐसा लगता है की यह  " विकास " कही इतना विकास न कर जाए की फिर इतिहास के पन्नो  से कुछ "पैराग्राफ" वापस उद्घृत करना पड़े।  

इतिहास होता है सीखने के लिए न की दोहराने के लिए। 

गुरुवार, 27 मार्च 2014

facebook की दुनिया...




कुछ दिनों से लिखने की भी बहुत इच्छा हो रही थी ,
सो सोचा क्यों न एक लेख इस अदभुत संसार के लिए लिखा जाये,
इस संसार में अच्छा लिखने वालों की रेल मची है , कुछ लोग बहुत अच्छा लिखते है ,
और कुछ लोग की पोस्ट तो हमेशा सबसे अच्छी होती है।
कही पढ़ा था की, "जो लोग हमेशा अच्छा लिखते है उन्हें अगर किसी सजा में एक सबसे ख़राब लेख लिखो तो उनकी हवा खिसक जाएगी।  "

इस संसार में , सुख-दुःख , उम्मंग-तरंग , निंदा-प्रशंसा ,अच्छाई-बुराई , विवेचना -आलोचना सब कुछ है दुनिया में जितने भी रस होते है, वो भी रसपान कराने को हमेशा तैयार मिलेंगे। जहाँ आपको एक से बढ़ कर एक बुद्धजीवी मिलेंगे तो उनसे बड़े लम्पट भी यही पर मिल जायेंगे।
यहाँ लोग  एक दूसरे को देखकर एक दूसरे के जैसा होने लगे हैं। यहाँ पर
शब्दों के आर पार भावनात्मक रिश्ते बन रहे हैं , कई मामलों में यह अच्छा है और कई मामलों में ख़तरनाक ।या फिर यूं कहे कि यह एक बहुरूपिया संसार है, जब कभी सब यह बन्द कर देता हु तो कई लोगो बहुत याद आती है।

यहाँ पर लोग ढेर सारे दलों , और झुंड मे बट गये है, कोई छिपकली दल में कोई मेंढक दल में तो कोई-कोई शेर जैसे तमाम दलों में बटा है। ये सब एक दूसरे पर आक्रमण करते व झेलते रहते है। खुशी तो इस बात कि है,   कि कोई यहाँ न तो घायल होता है, न हि मरता है। बस कूछ लोग मानसिक रोग के शिकार जरूर हो जाते है।

जीवन की कोई ऐसी सीढी और भाव भी अछूता नहीं है जो यहाँ न मिले ,
जीवन के "book" में जिन "face" को देखे/मिले वर्षो बीत गये वो सब भी इस "facebook" के संसार में मिल ही जाते है l ऐसा लगभग हर रोज़ होता है यहाँ हम किसी को , और कोई हमें खोज ही लेता है। बहुत ढेर सारे समाचार मीडिया में बाद में आते है , उससे पहले facebook पर ही मिल जाते है।

है न कमाल की चीज़। 



facebook सभी तरह की भावनाओं को व्यक्त करने का बहुत बढ़िया प्लेटफार्म है।  यह कई अछे बुद्धजीवियों के लिखे लेखों से भी रूबरू करवाता है। जो आपको पसंद है वो सब कुछ है यहाँ ,यह हम पर निर्भर करता है की हम इस संसार के समंदर से पत्थर निकालाते है या फिर मोती ,
आपके पास वास्तविकता में दोस्त की कमी हो सकती है , लेकिन यहाँ बिलकुल नहीं है।
कुछ गंदे मानसिकता वाले लोंग सिर्फ यहाँ गन्दगी ही फैलाते है , बहुत संभव है की वे असल ज़िन्दगी में भी ऐसे ही हों।

हमारी मित्रता सूची में आधे से ज्यादा मित्र ऐसे है जिन्हें मैंने आज तक कुछ लिखते नहीं पाया। ये भी अपने आप में बहुत बड़ा कमाल है न । 

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

भाषण से भी बनता है " Wave"/ "Effect" . . . . .!!

हमें अक्सर तमाम न्यूज़ चैनेलो , अखबारों  में देखने/ पढ़ने  को मिल जाता है, की  अब देश में मोदी की लहर चल रही है l कुछ नेतागण इसे स्वीकराते है,  कुछ इसे " Wave"  नहीं  "Effect " बताते है l

आखिर क्या है खास मोदी में जो बाकी नेताओं में नहीं है, क्या है खास मोदी में जो लोगो में लहर बन कर दौड़ रहा है l

इस बारे में ज्यादा  कुछ तो नहीं कह सकता , हा लेकिन अभी तक  जो देखा,  पढ़ा , समझा उससे अभी  तक यही समझ पाया हूँ की , भाषण से बनाता है लहर और इफ़ेक्ट , रवीश की रिपोर्ट पढ़कर जो कुछ आकलन कर सका  वो भी लिख रहा हु  l

अगर आप राहुल गाँधी जी के भाषण को, ध्यान से सुने  तो ऐसा लगता  है की वह वोट नहीं मांग रहे है ,बल्कि  अपनी पार्टियों में जो कमियां  है उसे कैसे ठीक करेंगे ये बता रहे हो , और बाकी समय में सरकार की उपलब्धिया गिना रहे होते है l

 राहुल गांधी के भाषण के दौरान जब कैमरा वहाँ बैठे लोगों पर पड़ता है तो उनके चेहरों पर थकान नज़र आती है l इसका कारण बहुत ही सीधा और स्पष्ट है , वह लगातार एक ही फ्रीक्वेंसी में बोलते है l और उनके भाषण को  देख ऐसा लगता है जैसे वो अपने  विरोधियों के भाषण , टिप्पड़ियों को ध्यान से नहीं सुनते या अनसुना कर देते है l

इसके ठीक विपरीत नरेन्द्र मोदी वो सीधे सामने बैठे जनता के आँखों में आँखे डालकर बोलते है फिर चाहे वो गलत ही क्यों न हो l नरेन्द्र मोदी के भाषण में शायद वो सब कुछ रहता है जिसे देखने सुनने इतनी भीड़ इकठ्ठा होती हैl  उनके भाषण में मनोरंजन , और उनका  नाटकीय अंदाज़ ही बहुत HIT है l कुछ हद तक मोदी जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज की शैली को भी फॉलो करते है l वो भी अपने भाषण के दौरान कई बार आवाज ऊंची -नींची करते , थोडा रुकते और फिर उसी लयमे बोलना शुरु कर देते है , कभी माइक के बहुत पास आ जाते तो कभी काफी दूर से दहाड़ते है l
मोदी हर दिन नए विचार के साथ के साथ मैदान में उतरते है ,अपना लम्बा चौड़ा स्पीच देकर तमाम आकडे गिनवाते है , पता नहीं उसमे कितने सही और कितने गलत होते है l मुझे लगता है को वो जानबूझ कर ऐसी गलती करते है , ताकि वो हर जगह चर्चा में बने रहे , इलेक्ट्रिक मीडिया और social मीडिया दोनों में l

मोदी अपनी सभी रैलियों में खुद को ऐसा पेश करते है की वो जीत चुके है बस शपथ लेनी बाकी है l जीवन में बढ़ना  है तो सिखाना भी ज़रूरी है l
मेरा ये कहने का कतई मतलब नहीं है की मैं मोदी का समर्थक हूँ l 

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

'मन की शांति'

जोशुआ लीबमेन ने लिखा है- मैं जब युवा था, तब जीवन में क्या पाना है, इसके बहुत स्वप्न देखता था। फिर एक दिन मैंने सूची बनाई थी- उन सब तत्वों को पाने की, जिन्हें पाकर व्यक्ति धन्यता को उपलब्ध होता है। स्वास्थ्य, सौंदर्य, सुयश, शक्ति, संपत्ति- उस सूची में सब कुछ था। उस सूची को लेकर मैं एक बुजुर्ग के पास गया और उनसे कहा कि क्या इन बातों में जीवन की सब उपलब्धियां नहीं आ जाती हैं?

मेरी बातों को सुन और मेरी सूची को देख उन वृद्ध की आंखों के पास हंसी इकट्ठा होने लगी थी और वे बोले थे, मेरे बेटे, बड़ी सुंदर सूची है। अत्यंत विचार से तुमने इसे बनाया है। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात तुम छोड़ ही गये हो, जिसके अभाव में शेष सब व्यर्थ हो जाता है। किंतु, उस तत्व के दर्शन, मात्र विचार से नहीं, अनुभव से ही होते हैं।

मैंने पूछा, वह क्या है? क्योंकि मेरी दृष्टिं में तो सब-कुछ ही आ गया था। उन वृद्ध ने उत्तर में मेरी पूरी सूची को निर्ममता के साथ काट दिया और उन सारे शब्दों की जगह उन्होंने छोटे से तीन शब्द लिखे,
'मन की शांति ।'

(साभार - योगेश गर्ग ) 

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

इस " अन्धविश्वास" में 'विश्वास' कितना है ..??

नज़र ,जादू,टोना ..!!


जब कभी, कही पर भी इन शब्दों का इस्तेमाल होता है तो हमारी युवा पीढ़ी इसे " अन्धविश्वास " कहती है l 
लाख हम चीख-चीख कर यही कहते फिरे , फिर भी अपने ही मध्यमवर्गीय घरों में जब कभी छोटा बच्चा खाना न खाए, दूध न पिए कुछ खोया- खोया सा रहने लगे तो. घर के बड़े-बुजुर्गों के कहने पर; मुट्ठी भर सरसों, दो-चार सूखी लालमिर्च, और थोडा सा चोकर लेकर बच्चे के ऊपर से घुमा कर आग में डाल देते है, इस विधी को "नज़र" उतारना कहते है l
अभी तक मै जितने भी लोगो के घर गया हूँ , चाहे वो रिश्तेदार हो, पडोसी हो या फिर मित्र हो लगभग सभी के यहाँ यही विधान अपनाया जाता हैl 

       इस बात को मैं यहाँ इसलिए लिख रहा हु की जो बात मै आगे लिखने जा रहा हूँ शायद आपको उस पर बहुत हंसी आये , लेकिन बात १०० टका सही है l सभी को शोले फिल्म का गब्बर ज़रूर याद होगा , गब्बर या उसके साथी जब गाँव में आते तो उन्हें देख डर से सभी गाँव वाले अपने-अपने घरों में घुस जाते और उनके सामने नहीं पड़ना चाहते थे l यही स्थिति आज एक गाँव में देखने को मिलीl 

सुबह का समय था सभी लोग धूप में चहलकदमी कर रहे थे, तभी अचानक लोग गायब हो गये और रोड पर सन्नाटा फ़ैल गया l मेरा भी ध्यान उसी ओर गया, तब माज़रा समझ में आयाl एक व्यक्ति से पूछा कौन है ये देवी.. ? उस व्यक्ति ने कहा " ये अगर किसी हरे पेड़ को आँख भर के देख ले तो, खड़ा पेड़ सूख जाये l "
मै : कैसे ..?
व्यक्ति : बहुतै तगड़ा "टोना " लगाई देत है.
इतना कहने के बाद उसने मुझे उससे जुड़ी कई कहानिया गिनाई l 

मेरा ये कहने का कतई मतलब नहीं है, कि इन पर विश्वास किया जाये| लेकिन क्या करे ये मानव मस्तिष्क है, उसकी बात, और घर , समाज में देखने के बाद एक प्रश्न आया मन में की ,

जब कभी, कही पर भी इन शब्दों का इस्तेमाल होता है तो हमारी युवा पीढ़ी इसे " अन्धविश्वास " कहती है l 
लाख हम चीख-चीख कर यही कहते फिरे , फिर भी अपने ही मध्यमवर्गीय घरों में जब कभी छोटा बच्चा खाना न खाए, दूध न पिए कुछ खोया- खोया सा रहने लगे तो. घर के बड़े-बुजुर्गों के कहने पर; मुट्ठी भर सरसों, दो-चार सूखी लालमिर्च, और थोडा सा चोकर लेकर बच्चे के ऊपर से घुमा कर आग में डाल देते है, इस विधी को "नज़र" उतारना कहते है lअभी तक मै जितने भी लोगो के घर गया हूँ , चाहे वो रिश्तेदार हो, पडोसी हो या फिर मित्र हो लगभग सभी के यहाँ यही विधान अपनाया जाता हैl 
इस बात को मैं यहाँ इसलिए लिख रहा हु की जो बात मै आगे लिखने जा रहा हूँ शायद आपको उस पर बहुत हंसी आये , लेकिन बात १०० टका सही है l सभी को शोले फिल्म का गब्बर ज़रूर याद होगा , गब्बर या उसके साथी जब गाँव में आते तो उन्हें देख डर से सभी गाँव वाले अपने-अपने घरों में घुस जाते और उनके सामने नहीं पड़ना चाहते थे l यही स्थिति आज एक गाँव में देखने को मिलीl 
सुबह का समय था सभी लोग धूप में चहलकदमी कर रहे थे, तभी अचानक लोग गायब हो गये और रोड पर सन्नाटा फ़ैल गया l मेरा भी ध्यान उसी ओर गया, तब माज़रा समझ में आयाl एक व्यक्ति से पूछा कौन है ये देवी.. ? उस व्यक्ति ने कहा " ये अगर किसी हरे पेड़ को आँख भर के देख ले तो, खड़ा पेड़ सूख जाये l "
मै : कैसे ..?
व्यक्ति : बहुतै तगड़ा "टोना " लगाई देत है.
इतना कहने के बाद उसने मुझे उससे जुड़ी कई कहानिया गिनाई l 

मेरा ये कहने का कतई मतलब नहीं है, कि इन पर विश्वास किया जाये| लेकिन क्या करे ये मानव मस्तिष्क है, उसकी बात, और घर , समाज में देखने के बाद एक प्रश्न आया मन में की ,


इस " अन्धविश्वास" में 'विश्वास' कितना है ..??  

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

क्या "आप " ने मुख्य धारा के दोनों बड़ी पार्टियों की पारम्परिक सोच प्रक्रिया को पटरी से उतार दिया है..!!!

जिस तरह से अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से स्तीफा दिया है, हो सकता है उनके पास कोई जबरजस्त राजनीतिक रणनीति न हो l लेकिन एक बात तो बिलकुल साफ़ दिखाई पड़ती हैकि उन्होंने "रूढ़िवादी " राजनीतिक चिंतको को ज़रूर परेसान किया l  हो सकता है केजरीवाल अब ये जाताना चाहते है , जैसा की ये पहले भी कर चुके है की, सड़क पर खड़ा हर आम आदमी  बहुत ताकतवर है l
मुझे ये नहीं पता की अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली वालो के साथ कैसी दिलदारी दिखाई l लेकिन मेरी राय में अरविन्द जी ने सही किया l जो काम वो एक आन्दोलनकारी के रूप में कर सकते है, वो मुख्यमंत्री के पद पर बैठ कर नहीं l क्योकी जिस तरह से वो वहा बैठकर  कोई फैसले लेते थे , दोनों पार्टियों समेत मीडिया भी उन पर सवाल उठातीl और अगर न करते या फिर करने में तय समय से एक भी सेकेण्ड की देरी होती तो भी इन सब का हाज़माँ ख़राब होने लगता.

अगर दिल्ली में सारी पार्टिया जन-लोकपाल के पक्ष मे थी, तो  वह आम सहमति से पारित हो सकता था, लेकिन इनकी मंशा इस पर टकराव की ही थीl जैसा की सब जानते है की  अरविन्द केजरीवाल ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था की अगर यह बिल  पारित/पेश  नहीं हुआ तो वह स्तीफा दे देंगे l
अब देखना यह है की-
अरविन्द केजरीवाल कामयाब होंगे या नहीं..!
इनका राजनीतिक जीवन कितना लम्बा होगा..!
"आप" का कितना प्रसार होगा ...!
हो सकता है की अरविन्द केजरीवाल का सारा विरोध प्रदर्शन  एक राजनीतिक  नाटक हो ..!! सिर्फ सत्ता लालच हो .l लेकिन एक बात तो साफ है की केजरीवाल एक प्रतीक के रूप में उभरे हैl यह सब वक़्त की मांग थी l  

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

क्या जिंदगी में पैसा ही सब कुछ है..!!!

जिंदगी में पैसा कितना जरूरी है !!!

क्या आज पैसा ही मनुष्य के जीवन में सब कुछ है ??
किसी ने सही ही कहा है. “ दुसरे संसार का तो कुछ पता नहीं लेकिन इस संसार में सब कुछ तो पैसा ही है”

कुछ अपवादों को छोड़कर आज ये बात बिलकुल सही साबित होती है. हमारे यहाँ तो कई सारी भाषाएँ बोली जाती है, लेकिन एक भाषा ऐसी है जो बहरा भी सुन लेता है, गूंगा भी बोल लेता है, और ये आसानी से सब के समझ में भी आती है. इसी पर एक कहावत है शायद आप ने भी सुनी होगी
 
          “ न बीवी, न बच्चा, न बाप न भैया The Whole think is that सबसे बड़ा रुपैया ”
जिस तरह आज इन्सान इंसानियत को भी छोड़कर मतलबी होता जा रहा है. वह दिन दूर नहीं जब कोई माँ-बाप अपनी दवा के लिए भी मुकदमा लड़ेंगे. क्योंकि पैसा अपना पराया नहीं देखता. संसार में सभी लोगो की अपनी महत्वाकांक्षाये होती है ,
कोई अपनी पसंद की चीजे खरीदना चाहता है, कोई मन पसंद जगह घूमना चाहता है, कोई तीर्थ यात्रा करना चाहता है. कोई गरीबो को दान देना चाहता है. और भी तमाम ख्वाहिश लोगो की होती है .
मतलब बहुत साफ़ है आपको अपनी ख़ुशी खरीदने के लिए पैसा चाहिए.

क्या कभी पैसा दुनिया की सबसे मज़बूत रिश्ता माना जाने वाला माता-पिता, और अर्धांगनी कही जाने वाली धर्म-पत्नी के रिश्ते को भी कमजोर कर सकता है, या फिर तोड़ सकता है. पता नहीं आपका जवाब क्या होगा..!!
अभी कल की ही बात है एक सज्जन जो की हमारे पडोसी गाँव के रहने वाले है, कुछ वक्त उनके साथ बिताने पर मुझे समझ में आया की पैसा न होने का दर्द क्या होता है, जब से उनकी नौकरी छूटी है उनकी धर्म-पत्नी न जाने कौन सा धर्म निभाने के लिए अपने पति के साथ जानवरों से भी निम्न कोटि का व्यवहार कर रही है.
आश्चर्य तो तब हुआ जब पता चला की उनकी बेटी भी अपने माँ का पूरा साथ निभा रही है. स्थिति यह है की वह व्यक्ति अपने ही घर में खुद पैदा किये गए दाने-दाने को तरस गया है. और भी कई ऐसि बात उन्होंने बताई जो व्यवहार शायद इन्सान नहीं कर सकता... उनसे बाते करते करते मेरी आँखों में आंसू आ गए . और तभी मेरे मन में तमाम प्रश्न उमड़ने लगे.
क्या जिंदगी में पैसा ही सब कुछ है..!!!

शनिवार, 4 जनवरी 2014

कही वे अपने साथ कोई बीमारी लेकर न आवें...

राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश  में जिस तरह से एक नयी राजनीती कि बिगुल फूंकने  ने कि कोशिश "आम आदमी पार्टी" ने किया है। या फिर यूँ कहे की जिस प्रकार वे सीधे जनता जुड़े रहकर इतनी बढ़ी सफलता प्राप्त की है,  जिसकी शायद उन्होने कल्पना भी न की    होगी।   वाकई वे काबिले तारीफ है।  अब देश के  मुख्यधरा की अन्य राजनितिक पार्टियां भी " AAP " से सीख ले रहे है। फिर वो चाहे शुरुआत महाराष्ट्र से  हो या फिर राजस्थान से इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

अब जिस तरह से " AAP " को दिल्ली कि सत्ता में लाया गया वह अपने आप में कई सवाल खड़े  करता है।
तमाम तरह के आरोपों  व ढेर सारी आलोचनाओं के बाद भी "AAP " ने सरकार बनाया। और अब "AAP " कि
मन्सा लोकसभा चुनाव में भी कूदने कि है, जिसके  लिए इन्हें बहुत सारे नए नेताओं/ पार्टी मेम्बरों की आवश्यकता है। जिस गति से AAP उभरी है उसे देख कर देश की कई नामी हस्तियाँ इसे ज्वाइन भी कर रहे है। और मुझे ऐसा लगता है की पार्टी में आगे और भी बड़े दिग्गज शामिल होंगे।  पिछले कुछ दिनों में ही AAP  से कई अच्छी हस्तियाँ जुडी है।

AAP में नए मेम्बरों का जुड़ना जितना लाभकारी है, उतना ही उसके लिए आगे चलकर  खतरनाक साबित हो सकता है। क्योकि लोकसभा चुनाव में चुनाव की दृष्टि से बहुत ही कम समाय बचा है, इतने कम समय में पार्टी अपने नए मेम्बरों की "भ्रष्टाचार" नामक "छन्नी " से छानना बहुत कठिन है, जिससे उनके बारे में वह सब कुछ पता लगाया जा सके जिसकी बदौलत आज "आम आदमी पार्टी " राजधानी में सरकार बनाने के साथ पुरे देश में लोकप्रिय हुई है। और हमारा भारतीय मीडिया इसे "आम " से बहुत "खास " पार्टी में बदलने में सफल रहा।

अब AAP को यह बहुत ज्यादा ध्यान रखने की कोशिश करनी चाहिये की जो नए सदस्य पार्टी में सदस्यता ले रहे है, वे अपने साथ कोई बीमारी लेकर न आवें, पार्टी को कोई ऐसा तंत्र बनाना  चाहिए जो नए मेम्बरों की फुल स्कैनिंग कर यह सुनाश्चित करे की उनमे कोई बिमारी तो नहीं है।  यदि पार्टी ऐसा करने में असफल रही तो वह दिन दूर नहीं जब "आम आदमी पार्टी " का नाम देश का हर आम आदमी  देश की अन्य पार्टियों की तरह लेगा।