देश व समाज की "तरक्की" के लिए अब होनी चाहिए "तरकारी" क्रांति मौजूदा वक़्त में जिस
तरह हरी सब्ज्जियों के कीमतों में बढ़ोत्तरी हो रही है। देश में सब्ब्जी क्रांति
की सख्त ज़रूरत है,
प्याज़, टमाटर मटर जैसी सब्जी को छोड़ दे, तो गरीबों का निवाला माने जाने वाला, उनके हर मौसम का साथी सब्जी की रीढ़ हम सब का आलू भी इस महगाई में आम लोगो को सताने पे तुला है। यदि सरकारी आँकड़ों की माने तो सीजन विशेष में हो रहा कम पैदावार ही इन सबका कारण है। अगर थोडा ध्यान दे चिंतन करे तो,कीमतों में हो रही वृद्धि को कम पैदावार की चादर से नहीं ढाका जा सकता है। कई सारे उपाय ऐसे भी है जिन्हें अपनाकर आम जन की थाली में पौष्टिकता परोसी या पहुचाई जा सकती है।
प्याज़, टमाटर मटर जैसी सब्जी को छोड़ दे, तो गरीबों का निवाला माने जाने वाला, उनके हर मौसम का साथी सब्जी की रीढ़ हम सब का आलू भी इस महगाई में आम लोगो को सताने पे तुला है। यदि सरकारी आँकड़ों की माने तो सीजन विशेष में हो रहा कम पैदावार ही इन सबका कारण है। अगर थोडा ध्यान दे चिंतन करे तो,कीमतों में हो रही वृद्धि को कम पैदावार की चादर से नहीं ढाका जा सकता है। कई सारे उपाय ऐसे भी है जिन्हें अपनाकर आम जन की थाली में पौष्टिकता परोसी या पहुचाई जा सकती है।
![]() |
| (फोटो: गूगल Image) |
यह निर्विवाद है की सब्जियों का प्रभावशाली ढंग से कृषि करने से उत्पादन बढ़ जाता है, लेकिन भडारण की असुविधा के कारण इन हरी सब्जियों को तुरंत बेचने की ज़रुरत होती है। नतीजन किसान अपने लागत मूल्य से भी कम में अपना उत्पाद बेचने को बाध्य हो जाता है। ऐसे में उन्हें सिर्फ और सिर्फ हानि ही होती है, और कृषि क्षेत्र में वे इसे दुबारा नहीं करते। अब आप ये सोच रहे होंगे की किसान कम मूल्य में अपना उत्पाद बेचता ही क्यो है? इसका दूसरा पहलू ये भी है की किसान सीधे बाज़ार में अपना उत्पाद नहीं बेचता है। क्योकि उसके पास और भी ढेर सरे काम होते है ; और उसके लिए इसके पास समय नही है। बाज़ार में सीधे उपभोक्ता तक उत्पाद न पहुच पाने के कारण लाभ का पूरा हिस्सा बिचौलिए और फुटकर विक्रेता मिलकर खा जाते है। जिसके फलस्वरूप छोटे किसानों को लाभ नहीं मिल पता है,
![]() |
| (फोटो: गूगल Image) |
अगर ऐसा ही चलता रहा
तो कुपोषण और भी तेजी के साथ हमें जकड़ेगा क्योकि सिर्फ "मिड डे मिल" से ही कुपोषण को नहीं
जीता जा सकता है। उसके लिए गरीबो की
थाली में भी हरियाली आनी चाहिए। सब्जियों के दाम बढ़ने जमाखोरी का दूसरा कारण यह है की, हरी सब्जियां साल भर न
पैदा होती है, और न ही मौसमी होती है। किसनो को अच्छे प्रकार के प्रमाणिक बीजों की
अनुपलब्धता भी एक कारण है।
धरती का सीना चीरकर सोना उगाने वाला
किसान बहुत मज़बूत होता है। यदि विवेकशील ढंग से उसकी मदद की जाये तो वो देश की तस्वीर भी बदल
सकता है। सरकार को चाहिए की कुछ ऐसी निति बनाये की किसान को स्वयं बाज़ार न जाना
पड़े। उसे उसके खेत में या घर पे ही सब्जियो की कीमत मिल जाये, जिससे वह
बाज़ार तक आने जाने में खर्च हो रहे समय व धन दोनों को बचा सकता है। प्रबंधन का
आभाव ही किसानो की मुश्किले बढ़ रहा है।
जब डेयरी कंपनिया गाँव-गाँव जाकर दूध इकठा
कर सकती है। तो उसी तर्ज पर गाँवों में से सब्जियाँ इकठ्ठी करके उन्हें पास के बाजारों
में सहकारी तंत्र द्वारा बेचा जाये..
इससे फालतू पड़ी सब्जियाँ गाँवों में सड़ेगी नहीं। बल्कि आवश्यकता के समय उपयोग में
भी आ जाएँगी। हरित क्रांति ,श्वेत क्रांति और भी बहुत सी क्रांतियाँ हुई है हमारे देश
में वो भी तब जब इसकी ज़रुरत थी। अब ज़रुरत है “तरकारी “ क्रांति की ..

